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Saturday, September 29, 2007

बस चलते जाना है

















चलना है चलना है, बस चलते जाना है

चलती है साँसे , चलती है जिंदगी 
जो थम जाये तो सब कुछ ख़तम 
राह में किसी मुकाम पर चलते पाँव 
जो जम गए तो कुछ रहा न हमदम  
जिंदगी बाज़ी है, हार कर भी जीत जाना है 
चलना है चलना है बस चलते ही जाना है

पल जो आनेवाला है,पल भर का कारवां है 
पल भर को ठहरेगा,आगे को चल पड़ेगा  
बातें बीत जाएँगी, कुछ दास्तानें रह जाएँगी 
लाख ढुंढोगे पर कहीं मिलता नहीं निशाना है 
चलना है चलना है बस चलते ही जाना है

हर घंटे पे, क्या घडी के कांटे क्या रुकते है ?
इस मंजिल पे ही, फिर आज कदम क्यों रुकते है?
मंजिल नहीं, ये तो बस राह का एक कदम है 
ऐसे कितने क़दमों को तो आना और जाना है 
चलना है चलना है बस चलते ही जाना है

दूर तलक फलक पे सितारे भी हैं 
बादलों के दिलकश नज़ारे भी है 
पर सूरज चाँद अपनी मंजिल नहीं 
चाँद तारों से आगे अपना ठिकाना है 
चलना है चलना है बस चलते जाना है

साथी छुट गए सब,छुटा पीछे मेला है 
निकल पडा हूँ लेके बस जोश और जूनून                                                                      
कोई ग़म नहीं, क्या हुआ जो कारवां अकेला है 
साहिल में आज रोता हूँ , तूफान में जो मुस्कुराना है 
चलना है चलना है बस चलते जाना है

कांटे है राह में,आसान नहीं कुछ मंजिल 
मुश्किलें है, पर आँखों में सपने है 
थके कदम,फूलती सांसे,सुख रहे लैब,
बस आ पहुंचे ,कुछ दूर नहीं अब 
बस थोडा, दो चार कदम और चलना है 
चलना है चलना है बस चलते ही जाना है  

अगर मैं जानता




अगर मैं जानता गीत लिखना 
तो लिखता एक गीत रोजाना 
कहता मुझे तुमसे मोहब्बत है 
तेरी ही याद आये मुझे रोजाना 


शायद वो कहते कि हो तुम हसीं 
जैसे ओस से भीगा हुआ गुलाब 
होता वो गीत,तुम होती जिसमे नज़ारे 
बोलती ये नज़रे,आप हैं लाजवाब 


तुम हो मेरे तन्हाईयों का सुकून 
या लगे खुली आँखों का ख्वाब 
लाखो हैं सितारे, तुझे देखा 
तो लगा ज़मी पे भी है महताब 


तौबा ये नजाकत,शोख अदाएं 
देखे तुझे तो चाँद भी शर्माए 
मेरी तो जन्नत है तुझमे कहीं  
बिन तेरे कुछ लगता अच्छा  नहीं 


फिर भी है बातें कुछ अनकही 
कहने को मगर अब लफ्ज़ नहीं 
शायद कह देता सब सही 
अगर मैं जानता गीत लिखना 

Tuesday, September 25, 2007

अनदेखी अनजानी



















ऐसा क्यों लगता है ,जैसे तुम हो जानी पहचानी !!
जबकी हम तुम मिले ना कभी ना देखी कोई निशानी

पहली बार आया था ख़याल तेरा तो जाने क्यों
लगी महकी है खुशबु कहीँ उद्यानों में
किसी दुल्हन के होंठों पे कोई शब्द खिला हो
या जलतरंग सी बजी है मय के पैमानों में

सोचूँ जब तेरे बारे में ,याद तुम्हारी करती मनमानी
ऐसा क्यों लगता है जैसे तुम हो जानी पहचानी !!

पहली बार सुना था मैंने नाम तुम्हारा तो जाने क्यों,
लगा कहीँ चूड़ी खनकी हो, बजी हो पायल संग में;
क्या कहूँ? लगा था जैसे कोई सुन्दर सपना हो,
उछला था दिल मेरा भी, जैसे मोर नाचे उमंग में;

ना हो तुम जिस गीत में होने लगती वो अभिमानी
ऐसा क्यों लगता है जैसे तुम हो जानी पहचानी !!

"रंजन" के गीतों में जितने भी शब्द गुंथे हैं
सबमें अंकित हो जैसे, बनी प्रेरणा छवि तुम्हारी
भंवरों का गुंजन,पंछी का कलरव, झरने की किलकारी
दिखता सौंदर्य अतुल, पर लगता सिर्फ कमी तुम्हारी

तन्हाई अब मुझसे दूर खड़ी है, जैसे हो अनजानी
ऐसा क्यों लगता है जैसे तू है जानी पहचानी !!

Monday, September 24, 2007

तुम्हारा नाम















उस सुबह आँख मलते, बाग़ मे टहलते हुये,
निहायत खुबसुरत मगर "उदास" गुलाब देखा.
पत्तियों पे थी नन्ही बूंदे शबनम की,
जाने क्यों लगा वो आंसू है उस गुलाब के,
मन उलझ गया,खूबसूरती भी कभी रोती है?

जानने की चाहत में उस तक खिंचा चला गया,
गुलाब उदास था,बोल पड़ा डर है आने वाले कल से;
पत्तियाँ-दर-पत्तियाँ जब यौवन झरता जाएगा.
पता चला, खोने के डर से जवानी भी रोती है!!

मैं निशब्द था सच सुनकर,होंठ सिल से गए
क्या अमरता चाहते हो? मैं पूछ बैठा
आंसू छलक आये, बोला हर कीमत पर
जाना तब खूबसूरती भी कभी रोती है!!

मैं उठा...और लिख दिया मुस्कारते हुये...
उसकी कोमल गुलाबी पंखुरियों पर...
उससे भी सुन्दर! हाँ सबसे सुन्दर "तुम्हारा नाम"